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Corona effect: देवीधुरा में इस बार नहीं खेली जाएगी ऐतिहासिक बग्वाल (Bagwal)…पढ़े पूरी खबर

UTTRA NEWS DESK
4 Min Read
Bagwal

Bagwal will not be played in Devidhura this time.

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चंपावत, 10 जुलाई 2020
बग्वाल(Bagwal) देखने को उत्सुक भक्तों को इस बार मायूयी झेलनी पड़ेगी. कोरोना(Corona) संक्रमण के चलते इस बार ऐतिहासिक बग्वाल नहीं खेली जाएगी. मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नहीं होंगे. प्रशासन व मंदिर समिति के बीच हुई बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया है.

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गुरुवार को मंदिर समिति के पदाधिकारियों, 4 खाम के मुखियाओं व प्रशासन के बीच चंपावत में पुल्ड आवास स्थित कैंप कार्यालय में बैठक संपन्न हुई. इस बैठक में डीएम एसएन पांडेय भी मौजूद रहे.

बैठक में तय हुआ कि देवीधुरा में रक्षाबंधन त्योहार के दिन खेली जाने वाली बग्वाल(Bagwal) इस बार नहीं होगी और मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नहीं होंगे. बग्वाल के दिन मंदिर समिति व चारों खामों के मुखियाओं की ओर से केवल मंदिर में पूजा—अर्चना की जाएगी.

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देवीधुरा स्थित मां वाराही देवी का मंदिर फोटो—उत्तरा न्यूज

बैठक में पहुंचे मंदिर समिति के सदस्यों ने कहा कि परंपराओं का निर्वहन जरूरी है लेकिन ज​नहित सर्वोपरि है. पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी ने बताया​ कि कोरोना(Corona) के कहर के चलते इस बार बग्वाल (Bagwal) मेला पूरी तरह निरस्त होने का फैसला अब तय हो गया है.

गौरतलब है कि इस बार 3 अगस्त को देवीधुरा में बग्वाल(Bagwal) मेला प्रस्तावित था. मंदिर समिति व प्रशासन के बीच पूर्व में हुई बैठक में परंपरा को जीवित रखने के लिए सांकेतिक बग्वाल(Bagwal) खेले जाने का निर्णय लिया गया था. जिसे अब निरस्त कर दिया गया है. इस बार केवल पूजा—अर्चना तक सीमित रहेगा वही, बग्वाल देखने को उत्सुक भक्तों को भी एक साल का इंतजार करना होगा.

बैठक में एडीएम टीस मर्तोलिया, एसडीएम शिप्रा जोशी, मंदिर समिति के अध्यक्ष खीम सिंह लमगड़िया, पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी समेत चारों खामों के मुखिया व मंदिर समिति से जुड़े सदस्य मौजूद रहे.

परंपरा निभाने को खेली जाती है बगवाल

चार प्रमुख खाम चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया, वालिग खाम के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा-अर्चना के बाद फल-फूलों से बगवाल खेलते हैं. माना जाता है कि पूर्व में यहां नरबलि देने का रिवाज था, लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के इकलौते पौत्र की बलि की बारी आई, तो वंशनाश के डर से बुजुर्ग महिला ने मां बाराही की तपस्या की. देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों ने 10—10 योद्धा आपस में युद्ध कर एक मानव बलि के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा करने की बात स्वीकार ली थी. तभी से ही बगवाल(Bagwal) का सिलसिला चला आ रहा है.

फल—फूलों से खेला जाता है बग्वाल युद्ध

पूर्व में पत्थरों से बग्वाल (Bagwal) खेली जाती थी, लेकिन 2012—13 में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. जिसके बाद पत्थरों की जगह फल—फूलों से बग्वाल खेली जाती थी. आस्था व भक्ति के इस अदभुत रोमांच को देखने के लिए राज्य के अलावा कई प्रांतों के लोग यहां पहुंचते है.

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