सदन में रिकॉर्ड कामकाज के चलते संसद और सांसदों के प्रति बढ़ा है जनता का विश्वास : ओम बिरला (पार्ट-1)

Newsdesk Uttranews
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सदन में रिकॉर्ड कामकाज के चलते संसद और सांसदों केनई दिल्ली,18 जून ( आईएएनएस)। देश की वर्तमान 17 वीं लोक सभा का 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इन तीन वर्षों के दौरान सदन के कामकाज , पारित होने वाले विधेयकों की संख्या, चर्चा के घंटों और चर्चा में शामिल होने वाले सांसदों की संख्या को लेकर कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं।

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यहां तक कि नए-नए प्रयोग कर बिरला ने पिछले 3 सालों के दौरान आवंटित किए गए कुल बजट में से भी 27 प्रतिशत यानि 668.86 करोड़ रुपए की अभूतपूर्व बचत की है। बिरला ने नए सांसदों को भी पहले की तुलना में ज्यादा बोलने का मौका दिया, सासंदों के प्रति सरकार की जवाबदेही बढ़ाने की कोशिश की लेकिन इसके बावजूद विरोधी सांसदों की तरफ से जल्दबाजी में कई विधेयकों को पारित करवाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। हाल ही में सांसदों के विशेषाधिकार हनन को लेकर भी कई शिकायतें उन तक पहुंची है।

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सदन के कामकाज , सदन के अंदर चर्चा के स्तर और हंगामें , सासंदों के गायब रहने, अभी तक लोकसभा उपाध्यक्ष का चयन नहीं होने और विरोधी दलों की शिकायतों सहित तमाम मुद्दों पर आईएएनएस के वरिष्ठ सहायक संपादक संतोष कुमार पाठक ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के साथ खास बातचीत की।

सवाल – 17 वीं लोक सभा का 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। लोक सभा के अध्यक्ष होने के नाते आप अपने 3 वर्ष के कार्यकाल को कैसे देखते हैं ?

जवाब – इन तीन सालों के अंदर सभी माननीय सदस्यों (सांसदों) की सक्रिय भागीदारी से सदन में कामकाज को लेकर कई रिकॉर्ड बने हैं। 17 वीं लोक सभा के अब तक संपन्न हो चुके आठों सत्र में कुल मिलाकर 995.45 घंटे कामकाज हुआ है और उत्पादकता 106 प्रतिशत रही है। वर्तमान लोक सभा अब तक 149 विधेयकों को पारित कर चुकी है। पहले एक वातावरण सा बन गया था कि सदन में कामकाज नहीं होता है लेकिन सभी सांसदों , सभी दलों और सदन के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग से वर्तमान सदन के अंदर जिस प्रकार का कामकाज हुआ है उसकी वजह से संसद और सांसदों के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा है।

सवाल – आपने जिन आंकड़ों की बात की, वह निश्चित तौर पर एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन सदन के अंदर कई बार चर्चा के स्तर को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं । आप स्वयं कई बार सदन के अंदर सांसदों को नसीहत देते या डांटते नजर आते हैं ?

जवाब- संसद में चर्चा-संवाद का स्तर बढ़े , इसके लिए सभी प्रयास कर रहे हैं। सासंदों के क्षमता निर्माण के लिए नई तकनीकों और सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर बल दिया गया है। इसके लिए संसदीय शोध एवं सूचना सहायता- प्रिज्म की स्थापना की गई है। इसके माध्यम से सांसदों को 24 घंटे सूचना उपलब्ध करवाई जाती है। सदस्यों को भिन्न-भिन्न विषयों पर रेफरेंस एवं लेजेस्लेटिव नोट्स भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। हमने इसकी होम डिलीवरी की भी व्यवस्था की है। संसद की लाइब्रेरी में सदस्यों के लिए चर्चा कक्ष का निर्माण किया है। अब तक की सभी लोकसभाओं में हुई चर्चाओं का मेटा डेटा पद्धति से कीवर्ड सर्च के लिए डिजिटाइजेशन किया जा रहा है। विशेष एप के जरिए सांसदों को 40 भाषाओं में 5 हजार से अधिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों तक पहुंच उपलब्ध करवाई गई है।

सवाल – तीन वर्ष पहले लोक सभा अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालते समय आपने यह कहा था कि आप नए सांसदो को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका देंगे और सदन के प्रति सरकार की जवाबदेही भी सुनिश्चित करेंगे। अब तक कितने कामयाब हो पाए हैं, आप?

जवाब – देखिए, क्षेत्र की जनता बड़ी ही आकांक्षा, उम्मीद और विश्वास के साथ अपने सांसद को चुन कर लोक सभा में भेजती है, ऐसे में उन्हे भी सदन में अपने क्षेत्र से और जनता से जुड़े मुद्दों को उठाने का मौका मिलना चाहिए। इसलिए पहली बार चुनकर आए सदस्यों को अवसर देने में प्राथमिकता दी गई तथा पहले ही सत्र में 208 सदस्यों ने शून्य काल में अपने-अपने मुद्दें उठाए। हमने नई पहल करते हुए शून्य काल में उठाए गए मुद्दों पर भी मंत्रालयों से जवाब मंगवाना शुरू किया। पिछले 3 वर्षों के दौरान सदन में शून्यकाल के अंतर्गत 4,648 यानि औसतन 31.4 मामले प्रतिदिन उठाए गए हैं। विधेयकों पर चर्चा में भी उनकी भागीदारी बढ़ी है। 377 के तहत उठाए गए विषयों पर पहले जवाब देने का औसत 45 से 50 प्रतिशत हुआ करता था , अब 98 प्रतिशत विषयों पर संबंधित मंत्रालयों की तरफ से जवाब दिया जाता है।

सवाल – लेकिन इन सभी उपलब्धियों के बावजूद विपक्षी दलों की तरफ से कई बार सदन के अंदर और बाहर यह आरोप लगाया जाता है कि जल्दबाजी में विधेयकों को पारित करवाया जा रहा है ? विपक्षी सांसदों का तो यहां तक कहना है कि कई विधेयकों पर चर्चा की तैयारी के लिए भी उन्हे समय नहीं दिया जाता है ?

जवाब -बहुत कोशिश करने के बावजूद भी सदन के आर्डर में नहीं होने के कारण ( हंगामे के कारण ) कुछ विधेयक जरूर ऐसे पारित हुए हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। ज्यादातर और महत्वपूर्ण विधेयकों पर आवंटित समय से ज्यादा चर्चा हुई है और ज्यादा सांसदों ने इसमें भागीदारी भी की है। पिछली कुछ लोकसभाओं के कामकाज की बात की जाए तो उनमें विधेयक पर चर्चा के लिए लिया गया औसत समय 85 मिनट से 123 मिनट के बीच था, 921 से लेकर 1246 सांसद इन चर्चाओं में शामिल हुए थे और कुल मिलाकर 135 से लेकर 192.45 घंटे की चर्चा हुई थी। इसकी तुलना में वर्तमान लोक सभा के अब तक के तीन साल के कामकाज की बात करे तो विधेयकों पर औसतन 132 मिनट की चर्चा हुई, चर्चा में 2,151 सांसद शामिल हुए और कुल मिलाकर 327.32 घंटे की चर्चा हुई।

सवाल – इसका एक दूसरा पहलू भी है कि कई बार महत्वपूर्ण मुद्दों या विधेयकों पर चर्चा के दौरान लगभग पूरा सदन ही खाली नजर आता है। संसदीय कार्यवाही में सांसदों के अनुपस्थित रहने को लेकर भी सवाल उठते हैं ? अगर सदस्य रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं तो वो सदन की कार्यवाही में भी मौजूद रहे, इसे सुनिश्चित करने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?

जवाब – इसके लिए हम लगातार प्रयास करते रहते हैं। सभी दलों के नेताओं से हम आग्रह करते रहते हैं कि वो अपने-अपने सांसदों को सदन की कार्यवाही में अधिकतम शामिल होने के लिए कहें। धीरे-धीरे अपेक्षित परिणाम आ रहे हैं और इसके लिए हम लगातार प्रयास करते रहेंगे।

सवाल – दल-बदल कानून पर पीठासीन अधिकारी के अधिकार को कम करने को लेकर सुझाव देने के लिए आपने राजस्थान विधान सभा अध्यक्ष सीपी जोशी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस मामले में अब तक क्या प्रगति हुई है ?

जवाब – दल-बदल कानून पर पीठासीन अधिकारियों की बैठक में चर्चा हुई थी, जिसके बाद हमने इस कमेटी को बनाया गया था। कमेटी का यह मानना है कि अभी इस विषय पर कानून विशेषज्ञों के साथ और अधिक चर्चा एवं विचार-विमर्श करने की जरूरत है। कानून विशेषज्ञों के साथ राय मशविरा करने के बाद कमेटी जब अपने सुझाव देगी तो उसे पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में रखा जाएगा और अगर सम्मेलन के दौरान यह लगा कि दल-बदल कानून में संशोधन आवश्यक है तो इस संबंध में संशोधन विधेयक लाने के लिए सरकार से आग्रह करेंगे।

क्रमश..

–आईएएनएस

एसटीपी/आरएचए

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