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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। दिल्ली की एक अदालत ने यौन उत्पीड़न के आरोपी 77 वर्षीय व्यक्ति को यह पता लगाने के बाद जमानत दे दी है कि आरोपी की उम्र अधिक होने के कारण उसकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का कोई वैध कारण नहीं बनता है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेद्र राणा की अवकाश पीठ ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने में लगभग एक महीने की देरी हुई।
न्यायाधीश ने यह भी देखा कि न तो प्राथमिकी में और न ही दर्ज बयानों में, आईपीसी की धारा 354बी के तहत अपराध करने का कोई उल्लेख है (किसी भी महिला के साथ हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, अपमान करने का इरादा या यह जानने की संभावना है कि वह इस प्रकार उसकी लज्जा को भंग करेगा)।
पीठ ने कहा, शिकायत से ही ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टियों के बीच कुछ पैसे का विवाद भी था। हालांकि, आईओ द्वारा कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया है कि वह आवेदक/आरोपी से हिरासत में पूछताछ क्यों चाहती है।
याचिकाकर्ता मदन लाल ने तर्क दिया कि वह लगभग 77 वर्ष का है और पुलिस उसे झूठे और तुच्छ मामले में फंसाने की कोशिश कर रही है। उसने कहा कि आईओ उसे लगातार परेशान कर रहा था और धमकी दे रहा था कि उसे दुष्कर्म के मामले में फंसाया जाएगा।
दलील दी गई कि आरोपी के भागने का जोखिम नहीं है और इस उम्र में उससे हिरासत में पूछताछ करना बेगुनाही की धारणा के पवित्र सिद्धांत के साथ एक गैरकानूनी निष्कर्ष निकाले के बराबर होगा।
याचिका में कहा गया है, इस प्रकार यह प्रार्थना की जाती है कि आरोपी अग्रिम जमानत का पात्र हो।
दूसरी ओर, लोक अभियोजक ने जमानत अर्जी का पुरजोर विरोध करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।
अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने न केवल पीड़िता से छेड़छाड़ की, बल्कि उसकी बेटी का यौन उत्पीड़न भी किया। यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता और उसकी बेटी का इलाज कराने के बहाने उनसे पैसे वसूले।
लोक अभियोजक ने कहा कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए आरोपी अग्रिम जमानत का पात्र नहीं है।
परिस्थितियों को समग्रता में देखते हुए अदालत ने कहा कि उसे सत्तर साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग पर प्रतिबंध लगाने का कोई वैध कारण नहीं मिला और उसे इतनी ही राशि में एक जमानत के साथ 20,000 रुपये के बॉण्ड पर जमानत देने की अनुमति दी।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम