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सांस्कृतिक आधिपत्य के खिलाफ सांस्कृतिक आत्मविश्वास स्थापित करें

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656f7bae0027f055ce6f5ccd98c9f163बीजिंग, 3 जून (आईएएनएस)। जब आधिपत्य की चर्चा करते हैं, तो लोग आमतौर पर किसी देश के विमान वाहकों और परमाणु मिसाइलों के बारे में सोचते हैं जो किसी भी समय दुनिया को नष्ट कर सकते हैं। हालांकि, इन भयानक हथियारों का रोजाना इस्तेमाल नहीं किया जाता है, वे आम तौर पर दूसरों को धमकी देने के लिए हैं। लेकिन, उन के पास दूसरे प्रकार का आधिपत्य है जो हर समय दुनिया में लोगों पर शासन करता है, और अधिकांश समय लोगों को एहसास नहीं है। वह है संस्कृति और विचारधारा का आधिपत्य।

पश्चिमी उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का आक्रमण हमेशा से संस्कृति और विचारधारा के विस्तार के साथ किया गया है। रक्त और अग्नि के अलावा, भाषा, दर्शन, साहित्य और कला सभी दूसरे देशों को विचारधारा डाम्पिंग करने के उपकरण हैं। लेकिन इस बात पर भी ध्यान देने योग्य है कि विकासशील देशों में, कई अभिजात वर्ग ने खुद पश्चिमी संस्कृति और विचारधारा का स्वीकार किया है। उन्होंने यह विचार अपने देश लाया है कि पश्चिम में सब कुछ श्रेष्ठ और महान है, और यह कि विकासशील देशों में सब कुछ पिछड़े हैं। और फिर इसे अपने ही देशों के लोगों को जबरदस्त डाला, जिससे अपने देश ने सांस्कृतिक प्रवचन अधिकार खो दिया। ऐसे लोगों का मानना है कि पश्चिम के मानकों के मुताबिक अपने राष्ट्र की संस्कृति का मूल्यांकन किया जाना चाहिये। यही है संस्कृति आधिपत्य से प्रभावित परीणाम। और इस तरह का आधिपत्य लोगों की विचारधारा को सीधे तौर पर प्रभावित करता है, इसलिए यह सबसे गहरा प्रकार का आधिपत्य है।

चीन और भारत दोनों दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यता वाले देश हैं। हजारों वर्षों के इतिहास में हम चिकित्सा पद्धति से लेकर चित्रकला तक दार्शनिक विचार और संस्कृति और कला की एक पूरी प्रणाली विकसित कर चुके थे। पश्चिमी साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के क्रूर आक्रमण के बिना, हमारी संस्कृति को अपनी दिशा में उच्च स्तर तक विकसित होना चाहिए था। लेकिन, हमारे सांस्कृतिक विकास को खून और आग से जबरन बाधित किया गया था। इसके अलावा, हमारे यहां कुछ ऐसे लोग हैं जो अंधाध्वंध तौर पर पश्चिमी संस्कृति में हर चीज की पूजा करते हैं, और अपने ही देश की परंपरा को पिछड़ा व सड़ा हुआ मानते हैं, और उन्हें त्याग दिया जाना चाहिए। ये क्यों हुआ है? ऐसा इसलिए है क्योंकि पश्चिम का सांस्कृतिक आधिपत्य हमारे कुछ लोगों के दिमाग पर राज करता है। उदाहरण के लिए, जब पूर्व में गांधार कला और दुनहुआंग कला एक अद्वितीय ऊंचाई पर पहुंच गई थी, तब पश्चिमी केवल चट्टानों पर चित्रण करने में सक्ष्म थे। लेकिन आज कुछ लोग पश्चिमी मानकों का उपयोग प्राचीन पूर्वी कला के बारे में सब कुछ मापने के लिए कर रहे हैं। जैसे संगीत, नृत्य, वेशभूषा, कला के काम आदि में ऐसी बुरी घटनाएं दिखने लगी हैं।

जब सांस्कृतिक आधिपत्य विकासशील देशों की आध्यात्मिक जीवन रेखा को काटता है, तब तो इन देशों के लोगों को यह एहसास नहीं है कि उन्होंने सही और गलत को परिभाषित करने का अधिकार खो दिया है। उदाहरण के लिए, हॉलीवुड फिल्मों में चीनी और भारतीयों सहित पूर्वी देशों के लोगों को ज्यादातर अज्ञानी, बदसूरत, पिछड़े पात्रों के रूप में वर्णित किया जाता है। विकासशील देशों में लोगों के लिए इस तरह की सांस्कृतिक और वैचारिक दबाव सैन्य और आर्थिक दबाव की तुलना में कहीं अधिक प्रभावित करता है। क्योंकि यह पूर्वी देशों के लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि उनकी संस्कृति पिछड़ी हुई है, जबकि सभी अच्छी चीजें पश्चिमी लोगों की हैं।

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हालांकि, दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यताओं के प्रतिनिधियों के रूप में, चीन और भारत के अधिकांश लोग पश्चिम के सांस्कृतिक आधिपत्य के आगे कभी नहीं झुके। हमें अपनी संस्कृति पर ²ढ़ विश्वास है। और जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी धीरे-धीरे पश्चिम के साथ पकड़ में आती है, वैसे-वैसे हमारा सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी अजेय होगा। भविष्य में, विश्व संस्कृति और कला का केंद्र निश्चित रूप से न्यूयॉर्क और पेरिस से पेइचिंग, मुंबई और नई दिल्ली में स्थानांतरित हो जाएगा। पूर्वी सभ्यता का वास्तविक कायाकल्प इस बात में प्रकट होना चाहिए कि हम अपनी संस्कृति और कला की व्याख्या पश्चिमी लोगों के मानकों के अनुसार नहीं करेंगे।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

--आईएएनएस

एएनएम

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