यूक्रेन से स्वदेश लौटे मेडिकल छात्र भविष्य को लेकर चिंतित, अभिवावकों को सरकार से उम्मीद

Newsdesk Uttranews
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94c6203c076af34d16d126c1c088cbedनई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों को दो महीने से अधिक समय स्वदेश लौटे हुए हो गया है, लेकिन अभी भी छात्रों के सामने अपनी पढ़ाई और भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है। अभिवावकों और छात्रों के मन में बस एक ही सवाल हैं कि आगे क्या होगा। भारतीय छात्र ठगा महसूस कर रहे हैं।

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यूक्रेन के इवानो शहर से स्वदेश लौटे कमल फिलहाल बनारस मे रहकर अपनी प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं, कमल के मुताबिक, सरकार हमारी सुन नहीं रही है, दो महीने से अधिक समय हो चूका है, आगे क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा है। मेडिकल की पढ़ाई ऑनलाइन नहीं हो सकती, उधर टीचर फीस लेने के लिए फॉर्मेल्टी कर रहे हैं। हम इस मोड़ पर आ चुके हैं की वापस जाकर पढ़ाई कर नहीं सकते और यहां से पढ़ाई हो नहीं सकती।

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कमल ने दावा करते हुए कहा, कुछ छात्रों ने तो पढ़ाई तक छोड़ दी है। इनमें मेरे तीन चार भी शामिल है।

यूक्रेन के टरनोपिल शहर से लौटीं थर्ड ईयर कि छात्रा रितिका निगम ने बताया , हमारी पढ़ाई को लेकर सरकार की तरफ से खास कोई निर्देश नहीं आया है, लेकिन एक दो राज्यों ने सरकारी कॉलेज में प्रेक्टिकल और अन्य पढ़ाई से जुड़ी सहायता प्रदान की है। यूक्रेन में युद्ध कम होने के उम्मीद कर रहे हैं इसलिए हम चाहते हैं कि सरकारी कॉलेज में हमें एडजस्ट किया जाए। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल सरकार के मुकाबले मध्यप्रदेश सरकार मदद नहीं कर पर रही है।

हमें अभी तक आश्वासन मिला है कि जुलाई माह तक कुछ हो सकता है, तो हम बस इंतजार कर रहे हैं। मेरी अभी परीक्षा चल रही है लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा, वापस न जाने के कारण पढ़ाई आगे कैसे पूरी होगी।

बीते 10 जून को भी एसोसिएशन की उत्तरप्रदेश इकाई ने उत्तरप्रदेश सरकार को बच्चों की पढ़ाई के संदर्भ में पत्र लिखा था। जिसमें कहा गया कि, उत्तरप्रदेश में 2400 मेडिकल के छात्र हैं और देशभर में करीब 16 हजार विद्यार्थी हैं जिनमें अधिकतर छात्र अवसाद में हैं। ऑपरेशन गंगा के तहत भारत स्वदेश लौटे छात्र व उनके अभिवावक प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में ही आगामी मेडिकल शिक्षा ग्रहण किए जाने की व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। वहीं केंद्र सरकार के अग्रीम आदेश तक यूपी के मेडिकल स्टूडेंट्स को नजदीकी मेडिकल कॉलेजों में हीं आगामी शिक्षा जारी रखने की व्यवस्था की जाए।

इसके अलावा इस मसले पर अभिवावकों ने मुख्यमंत्री से मिलने का भी समय मांगा है।

फिलहाल छात्रों, अभिवावकों और मेडीकल लाईन से जुड़े सभी लोगों के मन मे सवाल हैं जिनमें रूस और यूक्रेन की जंग कब खत्म होगी? कब वहां पहले की तरह हालात सामान्य होंगे? कब ये भारतीय छात्र वापस यूक्रेन जाएंगे? तथा इनकी पढ़ाई दोबारा कब शुरू होगी? पढ़ाई में लंबा गैप आने के कारण क्या इनकी डिग्रियां बेकार हो जाएंगी?

हालांकी इन सब सवालों के बारे में अभी कोई भी जवाब देने की स्थिति में नहीं है। फैडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ मनीष ने बताया, इन छात्रों के लिए कुछ फैसला करना सरकार के लिए थोड़ा मुश्किल है। इतने छात्रों को किसी भी अस्पताल या कॉलेज में एडजस्ट करना मुश्किल होगा इसलिए सरकार थोड़ा समय लेती नजर आ रही है।

हालांकी कुछ डॉक्टरों के मुताबिक, यदि सरकार इनके लिए कोई व्यवस्था करती है तो मेडिकल की परीक्षा में अच्छी रैंक न ला पाने वाले छात्रों की भी आवाज उठने लगेंगी।

दरअसल यूक्रेन में छह सालों में मेडिकल की पढ़ाई पूरी होती है। इसके बाद स्टूडेंट्स को एक साल अनिवार्य इंटर्नशिप करनी पड़ती है। फिर भारत में प्रैक्टिस करने और लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम के लिए पात्रता के लिए एक साल की सुपरवाइज्ड इंटर्नशिप भी करनी पड़ती है। इनके बाद एफएमजी एग्जाम क्वालीफाई करना पड़ता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सहजानंद प्रसाद सिंह ने कहा , इस मसले पर फैसला सरकार को लेना है, हमारी एसोसिएशन चाहती है कि छात्रों के भविष्य को बचाया जा सके। देश के कुछ डॉक्टर चाहते हैं कि इनको यहां एडजस्ट नहीं किया जाए लेकिन कुछ का मानना है कि इनकी मदद होनी चाहिए। फिलहाल सब कुछ सरकार के हाथ में हैं, सरकार ही कुछ कर सकती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन उन सभी छात्रों के साथ खड़े हैं जिनका भविष्य खतरे में हैं।

दरअसल यह माना जाता है कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई महंगी होती है इसलिए छात्र विदेश जाकर पढ़ाई करते हैं। ऐसे में वे यूक्रेन और रूस में कम पैसे में डाक्टर बनने का सपना साकार करते हैं। भारत में मेडिकल कालेजों में प्रवेश पाना बहुत मुश्किल है। कम सीटों के कारण आम लोगों के बच्चों का प्रवेश प्रक्रिया के माध्यम से डाक्टर बन पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यूक्रेन, रूस सहित अन्य कई देशों में मेडिकल की पढ़ाई सस्ती है और प्रवेश पाना भी आसान है।

पेरैंट्स एसोसिएशन ऑफ यूक्रेन एमबीबीएस स्टूडेंट्स की कोर्डिनेटर हर्षा सिंघल ने बताया , छात्रों की पढ़ाई को लेकर हमारी एपलिकेशन पीएमओ दफ्तर से लेकर जिले स्तर पर सभी जगहों पर लगी हुई हैं, हम अपनी तरफ से हर कोशिश कर रहे रहे हैं लेकिन सरकार की तरफ से जब ये कहा गया कि, हम छात्रों को हंगरी में एडमिशन दिलाएंगे। हंगरी में पढ़ाई बहुत महंगी है। दूसरी समस्या भाषा को लेकर होगी और जिस जगह पर 10 बच्चों का एडमिशन हो सकता है, उन जगहों पर हजारों बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?

भारत में बच्चों को एडमिशन न मिल पाने के कारण ही तो हमने उन्हें विदेश भेजा पढ़ाई करने के लिए। हम भीख नहीं मांग रहे हैं, हम युद्ध से ग्रसित हैं। यदि सरकार कोई सहायता नहीं कर सकेगी तो हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

देश के अलग अलग राज्यों में छात्रों की संख्या अलग है, दिल्ली में 150 मेडिकल के छात्र हैं जो यूक्रेन युद्ध के कारण स्वदेश लौटे हैं। ऐसे ही छात्र हरयाणा से 1400, हिमाचल प्रदेश से 482, ओड़िसा से 570, केरल से 3697, महाराष्ट्र से 1200, कर्नाटक से 760, यूपी से 2400, उत्तराखंड से 280, बिहार से 1050, गुजरात से 1300, पंजाब से 549, झारखण्ड से 184 और पश्चिम बंगाल से 392 छात्र हैं।

एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव पंकज धीरज ने बताया , भारत मे 596 मेडीकल कॉलेज हैं। हजारों छात्रों को लेकर सरकार की ओर से कोई ऑथेंटिक बयान नहीं दिया हैं। हालंकी जिन छात्रों की पढ़ाई लगभग पूरी हो चुकी हैं उनको एनएमसी ने इंटर्नशिप करने की इजाजत दे दी है। लेकिन प्रथम वर्ष से लेकर चौथे वर्ष तक के बच्चे अवसाद में हैं।

हम अभिवावक हंगरी, पोलैंड और जर्मनी में पढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। सरकार 596 कॉलेज में कोई ऐसी पॉलिसी बनाये जिनमें सेमिस्टर वाइस बच्चे पढ़ाई कर सकें, अभिवावक यूक्रेन में दे रहे फीस को यहां देने को तैयार हैं।

–आईएएनएस

एमएसके/आरएचए

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