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भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने में क्लीनटेक स्टार्टअप्स निभा सकते हैं अहम भूमिका

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बात दुनिया के स्टार्टअप इकोसिस्टम या समुदाय के आकार की हो तो भारत अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। फिलहाल जनवरी 2022 तक भारत में 61,000 से अधिक स्टार्टअप कंपनियों को मान्यता दी गई है और उन्हें पंजीकृत किया गया है। लेकिन अगर भारत को नेट ज़ीरो के संदर्भ में अपने 2030 के लक्ष्य को हासिल करना है तो सरकार को क्लाइमेट टेक स्टार्टअप्स को तरजीह देनी होगी।  

ये कहना है क्लाइमेट ट्रेंड्स और क्लाइमेट डॉट द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक रिपोर्ट का। 

भारत ने ग्लासगो में COP26 में 2070 में नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अपनी अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने के लिए कई उपाय करने का वचन दिया। लेकिन चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं के लिए अनुकूलन करना और साथ ही उत्सर्जन को कम करना, कुल मिला कर एक कठिन काम है। ऐसे में देश के लिए रिन्युब्ल एनेर्जी को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है। साथ ही देश के स्टार्टअप समुदाय को भारत के लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में अपनी भूमिका निभाने में आगे आना चाहिए। वर्तमान में भारत में अधिकांश स्टार्टअप आईटी क्षेत्र में केंद्रित हैं। ग्रीन टेक में जो हैं भी वो अधिकांश रिन्यूबल एनेर्जी या इलैक्ट्रिक वेहिकल के क्षेत्र में हैं। 

क्लाइमेटडॉट के निदेशक अखिलेश मगल कहते हैं, “हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ इस लड़ाई में क्लीन टेक स्टार्टप्स विशेष रूप से भूमिका निभा सकते हैं।” 

भारत सरकार की स्टार्टअप इंडिया स्कीम, आत्मनिर्भर भारत जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से स्टार्टअप्स को सरकार द्वारा आवश्यक सहयोग मिलता रहा है। लेकिन यह सहयोग बैंगलोर, दिल्ली, मुंबई और कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों के आसपास ही केंद्रित है। आगे, नीति निर्माताओं को वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने और जलवायु तकनीकी नवाचार में तेजी लाने के लिए सही पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करने की आवश्यकता है। 

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वैश्विक स्तर पर यूरोप क्लाइमेट टेक में सबसे तेजी से बढ़ते देशों में है। भारत वहाँ से सीख सकता है। साथ ही, यूरोपीय संघ के यूरोपीय प्रौद्योगिकी संस्थान (EIT InnoEnergy) जैसे मॉडल का पता लगाया जा सकता है। इसे शुरू में यूरोपीय आयोग द्वारा विशेष रूप से क्लाइमेट टेक स्टार्टअप में तेजी लाने के लिए सहयोग दिया गया था, लेकिन अब यह स्वतंत्र रूप से संचालित और वित्तपोषित है। 

अंत में क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला कहती हैं, “फिलहाल हमार लिए त्वरित और गहन डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता है। भारत मुख्य रूप से अपनी रिन्यूबल एनेर्जी परियोजनाओं के लिए घरेलू स्रोतों पर निर्भर है लेकिन एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए देश में एक महत्वपूर्ण निधि के प्रवाह की आवश्यकता है। COP26 में, भारत ने जलवायु वित्त के लिए एक ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता की घोषणा की। ऐसी ज़रूरत के मद्देनज़र क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धन के प्रवाह को सुविधाजनक बना सकते हैं।”  

यह रिपोर्ट कोपेनहेगन समझौते के संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती है जहां विकसित देश सालाना 100 अरब डॉलर जुटाने के लिए सहमत हुए और अभी भी पूरा होने का वादा बना हुआ है। 

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